-- मज़ाहिया ग़ज़ल --
पहन कर वो आया है जामा किसी का
है मोज़ा किसी का तो जूता किसी का
कुछ इस वास्ते भी मैं बनता हूं गूंगा
कहीं फूट जाए न भांडा किसी का
मुझे चाहे जितना भी फुसलाएं लीडर
बनूंगा न हरगिज़ मैं चमचा किसी का
मैं अपने में रहता हूं ख़ुद मस्त हर दम
नहीं पालता मैं झमेला किसी का
मुझे आंखें फ़ौरन दिखाती है बेगम
अगर मैं करूं कोई चर्चा किसी का
पड़ोसन से मैं जब भी करता हूं बातें
तसव्वुर में आता है चिमटा किसी का
मैं उसके ही कूचे में कूटा गया फिर
और ऊपर से काटा है कुत्ता किसी का
कई आशिक़ उस की गली में पिटे हैं
तुम्हें भी न पड़ जाए डंडा किसी का
सिपाही को जब तक कि दोगे न हफ़्ता
नहीं चलने वाला है धंधा किसी का
वो रम हो कि ठर्रा, चढ़ा लूं गटा गट
अगर मुफ़्त मिलता हो पौवा किसी का
मज़े ख़ूब लूटेंगे दा'वत के हम गर
पड़ोसी चुरा लाए मुर्ग़ा किसी का
है जो शे'र बेहतर उसी में तो "असग़र"
है सानी किसी का तो ऊला किसी का
--- हुकुमचंद कोठारी
Homer and stair, Mizahiya Gazal by Hukumchand Kothari
Hindi Mizahiya Gazal
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